कहाँ किसी की हिमायत में मारा जाऊँगा मैं ग़म-शनास मुरव्वत में मारा जाऊँगा मैं मारा जाऊँगा पहले किसी फ़साने में फिर इस के ब'अद हक़ीक़त में मारा जाऊँगा मिरा ये ख़ून मिरे दुश्मनों के सर होगा मैं दोस्तों की हिरासत में मारा जाऊँगा मैं चुप रहा तो मुझे मार देगा मेरा ज़मीर गवाही दी तो अदालत में मारा जाऊँगा हिसस में बाँट रहे हैं मुझे मिरे अहबाब मैं कारोबार-ए-शिराकत में मारा जाऊँगा बस एक सुल्ह की सूरत में जान-बख़्शी है किसी भी दूसरी सूरत में मारा जाऊँगा नहीं मरूँगा किसी जंग में ये सोच लिया मैं अब की बार मोहब्बत में मारा जाऊँगा