है हिज्र फैला हुआ और रौशनी कम है मोहब्बतों के लिए एक ज़िंदगी कम है तिरा विसाल अलामत है मेरे जीने की और अब के जीने की उम्मीद और भी कम है न वो फ़िराक़ न नफ़रत न इंतिहा-ए-ग़म मिरी हयात में हर एक तीरगी कम है तुम अपनी नीम सी आँखों से ही पिला डालो मिरे लबों पे पियालों की तिश्नगी कम है मिरे मिज़ाज से मिलता नहीं है तेरा मिज़ाज तिरे मिज़ाज में शायद कि आशिक़ी कम है अजीब बदला हुआ लग रहा है वो 'शाकिर' और उस के लहजे में भी अब कि बे-रुख़ी कम है