है जैसे रोज़ दीवाली सी दुनिया दुनिया वालों की हमें भी चार दिन की ज़िंदगी मिलती उजालों की जुदा ग़म है जुदा ख़ुशियाँ जुदा दिन है जुदा रातें ये दुनिया ही निराली है मोहब्बत करने वालों की ज़माना ख़ूबसूरत है ज़माने में हसीं लाखों मगर तस्वीर तो तुम हो मिरे ख़्वाबों ख़यालों की कभी तर्क-ए-मोहब्बत तुम करो सोचा न था मैं ने भुला दी एक दिन ही में मोहब्बत तुम ने सालों की ज़माने के वरक़ पर अब लिखूँगा दास्तान-ए-ग़म ज़बाँ भी आ गई मुझ को किताबों की रिसालों की छुपा कर एक आईना रखा है मैं ने भी दिल में कभी तस्वीर ले लूँगा सभी मैं हुस्न वालों की जवाब इस का सही देगा कोई तो इस को खोलूँगा बना कर एक गठरी मैं ने रखी है सवालों की सफ़र में ज़िंदगी के हम ने ये देखा है ऐ 'अर्पित' ज़रूरत पड़ ही जाती है कभी सूखे निवालों की