है जो मुंसिफ़ वही क़ातिल ठहरा अद्ल का मिलना तो मुश्किल ठहरा तुझ से मिलते ही लगा यूँ जैसे तेरा मिलना ही तो हासिल ठहरा तुझ को क्यों ढूँडती क़र्या क़र्या तेरा मस्कन तो मेरा दिल ठहरा रश्क होता है मुझी से मुझ को तू मिरी रूह में शामिल ठहरा रक़्स जारी है तजल्ली का जहाँ हाँ वो महफ़िल तो मिरा दिल ठहरा ग़म नहीं 'ज़र्रीं' तलातुम का मुझे अज़्म जो अब मिरा साहिल ठहरा