रेत रेत हर चेहरा इन में तू जुदा हो जा बन सके मसीहा तो जज़्बा-आश्ना हो जा रेज़ा-रेज़ा आईना और जाँ-गुसिल लम्हे ग़म को मेरे गुम कर दे दर्द की दवा हो जा नाव अपनी क्यों डूबे मक्र के समुंदर में आप अपना साहिल बन ख़ुद ही नाख़ुदा हो जा ज़िंदगी का हासिल तो ख़ामुशी नहीं साईं हर्फ़ हर्फ़ चिंगारी भर ले लब-कुशा हो जा रूह के शरारे से बिजलियाँ सी कौंदेंगी ज़ख़्म-ए-दिल रफ़ू कर ले ग़ैब की निदा हो जा