है कठिन राह तो गिर गिर के सँभालना होगा अपनी मंज़िल की तरफ़ दौड़ के चलना होगा अपने ख़्वाबों को हक़ीक़त में बदलने के लिए ख़्वाब-ए-ग़फ़लत से किसी तौर निकलना होगा तेज़ आँधी में जलाना है अगर अपना चराग़ रुख़ हवाओं का ब-हर-हाल बदलना होगा बन के उल्फ़त की घटा तुम यहाँ बरसो वर्ना आग नफ़रत की जो भड़केगी तो जलना होगा चुप रहोगे तो न मिल पाएगा इंसाफ़ कभी उस को पाने के लिए तुम को मचलना होगा ज़िंदगी माँग रही है जो उमंगों की दलील तुम को दरिया की तरह फिर से उबलना होगा तुम जो चाहो कि उजाला हो तिरे दम से 'मुनीब' बन के एक शम्अ यहाँ तुझ को पिघलना होगा