है कौन जो बताए तुम्हारा है घर कहाँ ढूँडेगी तुम को शम्स-ओ-क़मर की नज़र कहाँ रुकना पड़ेगा राह में ऐ हम-सफ़र कहाँ क्या जाने अपनी शाम कहाँ और सहर कहाँ ऐ अहल-ए-कारवाँ ये तुम्हें है ख़बर कहाँ मंज़िल किधर है ले के चला राहबर कहाँ परवाना सदक़े होने लगा शम्अ' पर मगर मेराज-ए-इश्क़ क्या है उसे ये ख़बर कहाँ इक साथ कह उठे हैं सभी बज़्म-ए-नाज़ में आलम में कोई और सही तू मगर कहाँ हम को सनम के हुस्न में हुस्न-ए-ख़ुदा मिला फिर ये बताओ हम सा कोई दीदा-वर कहाँ दीवाना कह रहा है बगूलों को देख कर फिरने लगी बहार चमन छोड़ कर कहाँ हम तो चलेंगे साथ ज़माने के उम्र भर चलता है अपने साथ ज़माना मगर कहाँ 'मुख़्लिस' हवस को छोड़ दो मेरा है मशवरा देखा है आप ने ये शजर बारवर कहाँ