है मिरे हिन्द की तहज़ीब की पैकर उर्दू अपनी मुश्तरका विरासत की है दुख़्तर उर्दू इस के हर लफ़्ज़ में तहज़ीब की नूरानी है लफ़्ज़-ए-ताबाँ लिए है मेरे मुनव्वर उर्दू मुल्क मेरे कभी महसूस किया है तू ने तेरी गुफ़्तार में आ जाती है अक्सर उर्दू 'मीर' ओ 'ग़ालिब' हों या 'साहिर' से नगीने कितने तू ने हम को दिए मुम्ताज़ सुख़नवर उर्दू तेरे शैदाई हैं फूलों से तुझे ढक लेंगे तुझ पे आएँगे सियासत के जो पत्थर उर्दू हिन्द की ख़ाक का हर रंग मिला है तुझ में सारी नदियों से बनी है तू समुंदर उर्दू मुझ को अब सिर्फ़ उसी दिन की तमन्ना है 'सहाब' बोली जाएगी मिरे मुल्क में घर घर उर्दू