है मुझ को अंदाज़ा खुल भी सकता है दस्तक पर दरवाज़ा खुल भी सकता है हिज्र में तुम मोहतात रहो तो बेहतर है क्यूँकि ज़ख़्म है ताज़ा खुल भी सकता है सोने वालों को मालूम नहीं शायद ख़्वाबों का ख़म्याज़ा खुल भी सकता है इतना भी मोहतात नहीं होता ये दोस्त रुख़्सारों पर ग़ाज़ा खुल भी सकता है सन्नाटा अब इतना भी बे-दर्द नहीं चुप पर ये आवाज़ा खुल भी सकता है कैसे इश्क़ का हर जानिब 'मन्नान-क़दीर’ बिखरा है शीराज़ा खुल भी सकता है