झुका के सर न यूँ दामन बचाना चाहिए था अना पर आ गई थी सर कटाना चाहिए था हुआ हमवार दरिया था शनावर का मुक़द्दर हुआ वो पार जिस को डूब जाना चाहिए था नसीहत का तिरी ये ज़ाविया कुछ और होता मियाँ नासेह तुझे भी दिल लगाना चाहिए था मशक़्क़त से बदलनी थी हथेली कि लकीरें मुक़द्दर हाथ में था आज़माना चाहिए था तेरे सर पर जो पगड़ी है मिरे अज्दाद की है मिरी ताज़ीम में ये सर झुकाना चाहिए था दर-ए-जानाँ दर-ए-जानाँ नज़र आता था हर-सू जबीं बेताब थी उस को ठिकाना चाहिए था मैं ख़ुद को याद था मेरी मोहब्बत में कमी थी तिरी क़ुर्बत में ख़ुद को भूल जाना चाहिए था हमेशा ही रही अन-बन किसी 'दानिश' से उस की मिरे जैसा उसे पागल दीवाना चाहिए था तमाशा थी जो 'दानिश' ज़िंदगी तो देख लेता जो नग़्मा थी तो उस को गुनगुनाना चाहिए था फ़साना बन गई थी ज़िंदगानी गर जो 'दानिश' उसे इज़्ज़त से सुनना था सुनाना चाहिए था