है मुझ में भी कोई निगहबान जैसा मैं अपने में रहता हूँ मीज़ान जैसा हमेशा ही इक फूल खिलता रहेगा मिरी शाख़-ए-दिल पर भी ईमान जैसा तह-ए-ख़ाक होना है गुलज़ार होना ब-ज़ाहिर ये सौदा है नुक़सान जैसा किसी अज़दहे का न साया हो इस पर हरा पेड़ हो कर है वीरान जैसा बहर-हाल हम ज़िंदगी जी के देखे ये मज़मूँ नहीं अपने उन्वान जैसा सुना अन-सुना कर दिया है सभी ने मैं लोगों में होता हूँ एलान जैसा मैं क्या क़त्ल करता कि 'जावेद' उस में कोई छुप के बैठा था इंसान जैसा