है मुअम्मा या कहानी इश्क़ है आइने से ख़ुद-कलामी इश्क़ है हँसते हँसते रो पड़े फिर हंस दिए क्या यही आदत पुरानी इश्क़ है इक तमन्ना ने जगाया था जुनूँ उस जुनूँ की पासबानी इश्क़ है ज़िक्र उस का ना-मुकम्मल है मगर ख़ामोशी की तर्जुमानी इश्क़ है मौत के सब ज़ाविए पढ़ती हुई हम सभी की ज़िंदगानी इश्क़ है उस की जब शीरीं-बयानी को सुना मान बैठे जावेदानी इश्क़ है