है नहीं मेरा जताना भी मुझे चाहता है और वो शाना-ब-शाना भी मुझे चाहता है थाम कर उँगली सिखाया भी उसी ने चलना अब वही शख़्स मिटाना भी मुझे चाहता है बस तिरा हो के रहूँगा मैं ये कैसे कह दूँ बात ये है कि ज़माना भी मुझे चाहता है पहले कहता था कि हूँ उस के बदन का गहना हाँ मगर अब वो गलाना भी मुझे चाहता है पहले तो जिस्म किया तीरों से मेरा छलनी अब वो सीने से लगाना भी मुझे चाहता है दफ़्न करना तो 'रियाज़' आधा ही करना मुझ को क्यूँकि 'राजीव' जलाना भी मुझे चाहता है