आप ने आख़िर ये क्या जादू किया दीवार पे आप का चेहरा मुझे दिखता रहा दीवार पे पहले बरसों मैं ने ख़ुद को क़ैद कमरे में किया और तब जा कर दरीचा ये बना दीवार पे आप से भी ये दरारें जो नहीं भर पा रहीं आप ने भी ज़ुल्म था कितना किया दीवार पे क़द्र तू ने की न उस की ज़िंदगी में जो कभी मौत पर भी उस की फोटो मत लगा दीवार पे छू लिया तुम ने सनम दीवार को तो यूँ हुआ रंग जैसे इक नया सा चढ़ गया दीवार पे लिख रहे थे लोग अपनी ज़िंदगी की दास्ताँ और हम ने नाम तेरा लिख दिया दीवार पे क़ैस ने यारों अगर ग़म में गुज़ारी ज़िंदगी 'अहद' भी तो सर पटकता ही रहा दीवार पे