है समुंदर सामने प्यासे भी हैं पानी भी है तिश्नगी कैसे बुझाएँ ये परेशानी भी है हम मुसाफ़िर हैं सुलगती धूप जलती राह के वो तुम्हारा रास्ता है जिस में आसानी भी है मैं तो दिल से उस की दानाई का क़ाएल हो गया दोस्तों की सफ़ में है और दुश्मन-ए-जानी भी है पढ़ न पाओ तुम तो ये किस की ख़ता है दोस्तो वर्ना चेहरा मुसहफ़-ए-आमाल-ए-इंसानी भी है ज़िंदगी उनवान जिस क़िस्से की है वो आज भी मुख़्तसर से मुख़्तसर है और तूलानी भी है रतजगे जो बाँटता फिरता है सारे शहर में वो फ़सील-ए-ख़्वाब में बरसों से ज़िंदानी भी है बे-तहाशा वो तो मिलता है मोहब्बत से मगर कुछ परेशानी भी है और ख़ंदा-पेशानी भी है अपना हम-साया है लेकिन फ़ासला बरसों का है ऐसी क़ुर्बत इतनी दूरी जिस में हैरानी भी है ज़िंदगी भर हम सराबों की तरफ़ चलते रहे अब जहाँ थक कर गिरे हैं उस जगह पानी भी है 'रम्ज़' तेरी तीरा-बख़्ती की ये शब कट जाएगी रात के दामन में कोई चीज़ नूरानी भी है