है शहर-ए-उल्फ़त में क़दग़नों से अजीब ख़ौफ़-ओ-हिरास रहना ख़िज़ाँ के आने पे यास छाए बहार हो तो पुर-आस रहना कभी कभी कोई भेजता है नज़र में चाहत की फूल कलियाँ मोहब्बतों का नसीब ठहरा कभी कभी का उदास रहना अगर ये चाहो कि ज़ीस्त गुज़रे हँसी ख़ुशी की फुवार में ही बहुत ज़रूरी है ऐ 'ज़फ़र' ये तिरा भी मौसम-शनास रहना