राह में मेरी अगर आए तो मर जाएँगे आप क्या मुझे यूँ ही नज़र-अंदाज़ कर जाएँगे आप एक पल आसूदगी का एक लम्हा इश्क़ का मुझ से हम-आग़ोश होते ही निखर जाएँगे आप सत्ह पर मुझ को छलकने की न दावत दीजिए एक क़तरा भी अगर टपका तो भर जाएँगे आप इक अदा मासूमियत और एक तोहमत मासियत कब तलक बचते रहेंगे हम किधर जाएँगे आप बद-शुगूनी की अलामत पेश-ख़ेमा मौत का देखिए हम जान दे देंगे अगर जाएँगे आप क़ब्र जैसी ना-पसंदीदा जगह भी 'इर्तिज़ा' दिल कभी हरगिज़ न चाहेगा मगर जाएँगे आप