है सोज़-ए-दिल से सामाँ रौशनी का ये हासिल कम नहीं दिल की लगी का वही राहें अकेली आज फिर मैं भरम सब मिट गया है दोस्ती का ये तन्हाई ये आज़ादी का आलम मज़ा आने लगा है ज़िंदगी का जहाँ दिल में सिमटते जा रहे हैं तमाशा हो रहा है बे-ख़ुदी का हज़ारों साज़ दिल में बज रहे हैं असर होने लगा है बंदगी का हमारी आड़ ले कर छुप रहे हो खुला सब राज़ अब पर्दा-दरी का फ़रिश्तों से बहुत ऊपर है इंसाँ भला जो चाहता है हर किसी का तमन्ना ही रही न 'शौक़' कोई असर अच्छा हुआ आवारगी का