सुरमई रातों से छिनवा कर सहर की रौनक़ें नाला-ए-शाम-ए-ग़रीबाँ बेचता फिरता हूँ मैं मौज-ए-बरबत मौज-ए-गुल मौज-ए-सबा के साथ साथ निकहत-ए-गेसू-ए-ख़ूबाँ बेचता फिरता हूँ मैं दीदनी है अब मिरे चाक-ए-गिरेबाँ का मआल कज-कुलाहों के गिरेबाँ बेचता फिरता हूँ मैं शोला-ए-तारीख़ की ज़द पर है ताज-ए-ख़ुसरवी ग़र्रा-ए-तक़दीर-ए-सुल्ताँ बेचता फिरता हूँ मैं कलबा-ए-मेहनत-कशां को दे के ग़ैरत का चराग़ शौकत-ए-क़स्र-ए-ज़र-अफ़्शाँ बेचता फिरता हूँ मैं