है उतना मुख़्तसर क़िस्सा हमारा यहाँ कोई नहीं अपना हमारा यहाँ तुम जो ये सहरा देखते हो ये होता था कभी दरिया हमारा गुज़रते हैं तेरे कूचा से अब भी बदलता ही नहीं रस्ता हमारा यही डर हम को खाए जा रहा है तुम्हारे बाद क्या होगा हमारा कभी अपने ही दिल से पूछ लेना तुम्हारे पास है क्या क्या हमारा