मिलन की रात वो पहली नहीं मुमकिन भुला पाना मिरा तेरे क़रीब आना तिरा ख़ुद में सिमट जाना वो पहली शब में पहले तो झिजकना और शर्माना मुझे है याद फिर ख़ुद ही तिरा मुझ से लिपट जाना वो अक्सर याद आता है तिरा आग़ोश में आना मुझे मदहोश कर के फिर वो चुपके से चले जाना मोहब्बत में नहीं ख़ूबी ये जो समझा रहे हो तुम जब अपने दिल को समझा लो मिरे दिल को भी समझाना बहुत नज़दीक से चेहरा बख़ूबी कब दिखाई दे जिसे घर ने न पहचाना उसे दुनिया ने पहचाना