है ये गुल की और उस की आब में फ़र्क़ जैसे पानी में और गुलाब में फ़र्क़ लब-ए-ख़ूबाँ कहाँ वो लाल कहाँ है बहुत शर्बत और शराब में फ़र्क़ लाख गाली कही है कम मत दे मैं गिनूँगा न हो हिसाब में फ़र्क़ ज़ाहिदा ज़ोहद तू पढ़ा, मैं इश्क़ है मिरी और तिरी किताब में फ़र्क़ ऐ शराबी गज़क तो करता है कुछ तो कर दिल में और कबाब में फ़र्क़ आँख जब से खुली न देखा कुछ ज़िंदगानी में और हुबाब में फ़र्क़ कुछ नहीं करते तुम जो शोले में और इस रु-ए-पुर-इताब में फ़र्क़ है ज़मीं आसमान का यारो ज़र्रे में और आफ़्ताब में फ़र्क़ क्यूँकि 'जुरअत' हो शैख़ तुझ सा कि है पीरी और आलम-ए-शबाब में फ़र्क़