है तेरी ही काएनात जी में जी तुझ से है तेरी ज़ात जी में तू ने किया क़त्ल गो ब-ज़िल्लत समझा मैं इसे नजात जी में क्यूँ ग़म ये मुझी पे मेहरबाँ है सब शाद हैं ज़ी-हयात जी में इस तंग-दहान के सुख़न पर याँ गुज़रे हैं सो निकात जी में हर-दम ब-हज़ार जल्वा-ए-नौ देखूँ हूँ तिरी सिफ़ात जी में दम आँखों में आ रहा है 'जुरअत' गुज़रे है ये आज रात जी में आ जावे तो हाल-ए-दिल सुना लें रह जाए न जी की बात जी में