है ये इब्तिदा ग़म-ए-इश्क़ की अभी ज़हर-ए-ग़म पिया जाएगा कभी चाक होगा ये पैरहन कभी पैरहन सिया जाएगा ये अजीब अह्द-ए-तिलिस्म है यहाँ ज़ीस्त मौत की क़िस्म है यहाँ तेरी बात से मुन्हरिफ़ तुझे बरमला किया जाएगा पकी फ़स्ल कटने से पेशतर नए सर उगाना न भूलना है क़फ़स-गरों से मुक़ाबला इसी तौर ही जिया जाएगा दर-ए-दिल पे ख़ुशियों की दस्तकें जो सुनीं तो दर्द सिसक उठा मैं जनम जनम से यहाँ हूँ अब मुझे दर-ब-दर किया जाएगा यहाँ सारे रस्ते पटे हैं लाशों से इन के बीच सँभल के चल तू सफ़ीर-ए-अम्न है लौट जा तुझे रास्ता दिया जाएगा कोई संग है कि जिधर से आए उसी की सम्त उछाल दूँ ये मोहब्बतों का जवाब है ज़रा सोच कर दिया जाएगा मेरे लोग कितने हैं बा-ख़बर मुझे इस से पहले ख़बर न थी किसी और शख़्स का तज़्किरा मिरे नाम से किया जाएगा यहाँ उन पे होगी गिरफ़्त जिन पे हो दोस्तों का गुमाँ 'सदफ़' वो जो दुश्मनों की सफ़ों में है उसे साथ ले लिया जाएगा