हैरान आँख ख़्वाब-निगर बाद में हुई नन्ही सी आरज़ू थी अमर बाद में हुई किस मर्ज़-ए-ला-दवा ने उसे कर लिया असीर ख़ुद पर तो चारागर की नज़र बाद में हुई क़ैद-ए-क़फ़स से ज़िंदगी पहले हुई रिहा और रौशनी सी जानिब-ए-दर बाद में हुई किस दश्त-ए-बे-अमाँ में लुटा कारवान-ए-शौक़ दिल को तो हादसे की ख़बर बाद में हुई कहते हैं लोग उस ने कई घर जला दिए वो रौशनी कि जो मिरे घर बाद में हुई रानाई चूसती रही अब्र-ए-बहार की इक चोब-ए-ख़ुश्क शाख़-ए-समर बाद में हुई ग़म तो जनम जनम से मिरे साथ था 'सदफ़' लेकिन ख़ुशी शरीक-ए-सफ़र बाद में हुई