हैं मुनफ़रिद अमल से ये गुफ़्तार से अलग रहबर जुदा हैं क़ौल से किरदार से अलग होंगे न ग़ैर के सितम-आज़ार से अलग जब तक न होंगे हम सफ़-ए-अग़्यार से अलग क़स्र-ए-ख़ुलूस हो गया मिस्मार इस तरह बैठे हैं लोग साया-ए-दीवार से अलग तहज़ीब के ज़वाल पे हैरत न कीजिए ये अहद-ए-नौ है साबिक़ा अदवार से अलग कर लेते हैं ये जुम्बिश-ए-अबरू से गुफ़्तुगू हैं अहल-ए-इश्क़ ज़हमत-ए-इज़हार से अलग तर्क-ए-हया ने छीन लिया मह-वशों का हुस्न बे-क़द्र हैं ये हो के हया-दार से अलग सरमाया-ए-हयात मोहब्बत वफ़ा ख़ुलूस दौलत है अपनी दौलत-ए-ज़रदार से अलग शान-ए-ख़ुदी बचाए हुए मस्लहत से दूर मैं जी रहा हूँ वक़्त की रफ़्तार से अलग 'अहसन' को आरज़ू नहीं नाम-ओ-नुमूद की रखता है ख़ुद को कूचा-ओ-बाज़ार से अलग