हैं शाम ही से रंज-ओ-क़लक़ जान पर अब तो हम को नहीं उम्मीद कि पकड़ें सहर अब तो दीवाना कोई होए तो हो उस की बला से अपने ही परी-पन पे पड़ी है नज़र अब तो साए से चहक जाते थे या फिरते हो शब भर वल्लाह कि तुम हो गए कितने निडर अब तो जाँ को तो ख़बर भी नहीं ऊपर ही से ऊपर दिल ले गई इस शोख़ की नीची नज़र अब तो मय-ख़ाना-ओ-मय-ए-इश्क़-ए-बुताँ और ये सिन-ओ-साल 'तनवीर' ख़ुदा का भी ज़रा ख़ौफ़ कर अब तो