हैराँ है आँख चश्म-ए-इनायत को क्या हुआ दुनिया में रस्म-ओ-राह-ए-मोहब्बत को क्या हुआ माना कि शहर-ए-हुस्न में जिंस-ए-वफ़ा नहीं लेकिन जहाँ में इश्क़ की दौलत को क्या हुआ आती है याद रोज़ ख़ुद आती नहीं मगर यारब हमारी शाम-ए-मसर्रत को क्या हुआ वक़्त-ए-विदाअ ज़र्द हुआ रंग-ए-रुख़ अगर रंग-ओ-बहार-ए-आरिज़-ए-फ़ितरत को क्या हुआ थी हम को अक़्ल से तो न पहले ही कुछ उमीद 'नय्यर' जुनूँ के फ़ैज़-ओ-करामत को क्या हुआ