हिज्र-ए-जानाँ में जी से जाना है बस यही मौत का बहाना है क्यूँ न बरसाएँ अश्क दीदा-ए-तर आतिश-ए-इश्क़ का बुझाना है हो अदू जिस पे कीजिए एहसान कुछ अजब तरह का ज़माना है याद दिलवा के दास्तान-ए-विसाल आशिक़-ए-ज़ार को रुलाना है रख दिला रोज़-ओ-शब उमीद-ए-विसाल रंज-ए-फ़ुर्क़त अगर भुलाना है जान जाती है जिस जगह सब की उसी कूचे में अपना जाना है कोई दम में अदम को हूँ राही आ अगर तुझ को अब भी आना है ख़ाक-सारी न छोड़ना 'रा'ना' एक दिन ख़ाक ही में जाना है