हैरत-ए-नज़्ज़ारा आख़िर बन गई रानाइयाँ ख़ाक के ज़र्रों में आती हैं नज़र गुलज़ारियाँ जब से देखा है तुझे इक दर्द है दिल में निहाँ ऐ सबा ले जा तू ही उन तक मिरी बेदारियाँ अलविदा'अ ऐ क़ाफ़िले वालो मुझे अब छोड़ दो मेरी क़िस्मत में लिखी हैं दश्त की वीरानियाँ