उल्टा असर ये शिकवा-ए-बेदाद से हुआ वो और भी ख़फ़ा मिरी फ़रियाद से हुआ मजनूँ ही से हुआ न वो 'फ़रहाद' से हुआ जो काम इश्क़ में दिल-ए-नाशाद से हुआ दुश्मन की क्या मजाल कि मुझ को बुरा कहे जो कुछ हुआ हुज़ूर के इरशाद से हुआ उस दुश्मन-ए-वफ़ा का तसव्वुर है फिर मुदाम मजबूर मैं तो इस दिल-ए-नाशाद से हुआ अल्लाह ही अब के जान बचाए तो बच सके फिर इश्क़ मुझ को इक सितम-ईजाद से हुआ मरने के बाद भी न गई इश्क़ की ख़लिश ये उक़्दा हल न ख़ंजर-ए-जल्लाद से हुआ इतना तो बे-क़रार हुआ था न दिल कभी जितना कि मुज़्तर आज तिरी याद से हुआ जो काम दोस्तों से न उल्फ़त में हो सका 'हाजिर' वो काम ग़ैर की इमदाद से हुआ