हैरत से देखता है मिरा नक़्श-ए-पा मुझे यारान-ए-तेज़-गाम ये क्या हो गया मुझे ख़ुद मेरे दिल में शौक़-ए-सफ़र ही नहीं रहा अब लाख भेजें मंज़िलें अपना पता मुझे समझा था बस हयात को ख़्वाबों की जल्वा-गाह इक दिल का दाग़ कर गया ख़ुद-आश्ना मुझे पाला है अपनी गोद में तूफ़ान ने तुझे ऐ मौज उस की कोई झलक तू दिखा मुझे ये कौन सी ख़लिश निकल आई नई नई लगता है आज दर्द-ए-जिगर कुछ सिवा मुझे 'अज़हर' मिरे हरीफ़ थे कुछ ग़म-ज़दा मगर थे यार ख़ुश कि देख लिया डूबता मुझे