हज़ार हादसात-ए-ग़म रवाँ-दवाँ लिए हुए कहाँ चली है ज़िंदगी कशाँ कशाँ लिए हुए मिरे नसीब की ये ज़ुल्मतें न मिट सकीं कभी कोई गुज़र गया हज़ार कहकशाँ लिए हुए ये ज़िंदगी बदलते मौसमों का रंग-रूप है कभी बहार का समाँ कभी ख़िज़ाँ लिए हुए मिरा ये कर्ब है कि मेरा कारवाँ गुज़र गया सिमट के रह गया हूँ गर्द-ए-कारवाँ लिए हुए अगर वो जान-ए-आरज़ू मिले तो उस की नज़्र हो खड़ा हूँ कब से मुंतज़िर मैं नक़्द-ए-जाँ लिए हुए मिरे वक़ार का सवाल था मैं कुछ न कह सका गुज़र गए वो राहतों का इक जहाँ लिए हुए किसी भी ज़ाविए से 'अर्श' इस को देखिए मगर क़दम क़दम पे ज़िंदगी है इम्तिहाँ लिए हुए