कश्ती-ए-दिल नज़्र-ए-तूफ़ाँ हो गई एक मुश्किल और आसाँ हो गई सुब्ह-दम शबनम को जाने क्या हुआ सोहबत-ए-गुल से गुरेज़ाँ हो गई उस नज़र की सादगी तो देखिए जो तिरे जल्वों पे क़ुर्बां हो गई फूल को हैरत-ज़दा सा देख कर हर कली गुलशन में हैराँ हो गई मेरे पहलू से वो उठ कर क्या गए दिल की दुनिया सख़्त वीराँ हो गई दिल की पैहम बे-क़रारी के निसार बढ़ते बढ़ते आफ़त-ए-जाँ हो गई देख कर मेरी परेशानी को 'अर्श' ज़िंदगी ख़ुद भी परेशाँ हो गई