हज़ार करते रहो जतन तुम जतन के दम पर बुझा कहीं से बुझा सको तो बुझा के देखो उभर पड़ेगा सुकूत लब हो ज़मीर लेकिन ख़मोश मुझ को न रहने देगा पुकारने पर पुकारती है मिरे ही अंदर सदा कहीं से यहाँ वो दार-ओ-रसन नहीं हैं किसी की जाँ है समर किसी का लहू कहीं से छलक पड़ेगा उठेगा रंग-ए-हिना कहीं से जहाँ के ज़िंदाँ में हब्स आख़िर रहेगा कब तक सहेंगे कब तक जहाँ तो आख़िर जहाँ रहेगा जहाँ में ढूँडो सबा कहीं से नुमू सुख़न में है आमदों की सुख़न पे कामिल यक़ीं मुझे है क़लम तो मेरा ही चल रहा है प हो रही है अता कहीं से