किस लिए पूछते हैं जबकि सबब जानते हैं लोग जो हाल-ए-दिल-ए-चारातलब जानते हैं किस की लौ ठहरती है कौन से बुझते हैं चराग़ हम नक़ीबान-ए-हवा सब के नसब जानते हैं आश्ना लाख मिलें तुझ से क़रीं भी हूँ बहुत जानने वाले भी ऐ दिल तुझे कब जानते हैं किस के धोके में रहें मुंतज़िर-ए-ख़्वाब-ए-हसीं हम भी सादा हैं कहाँ मोहलत-ए-शब जानते हैं साया तक रखते हैं मलहूज़ दबिस्तान-ए-वफ़ा आँख उठाएँ भी तो आदाब-ओ-अदब जानते हैं कौन कठ-पुतली है ऐवान-ए-तमाशा किस का पस-ए-पर्दा तो हक़ीक़त यहाँ सब जानते हैं