हज़ारों बार कह कर बेवफ़ा को बा-वफ़ा मैं ने बताया है ज़माने को वफ़ा का रास्ता मैं ने बड़ी इज़्ज़त से अहल-ए-जुर्म मेरा नाम लेते हैं गुनहगारों को इक दिन कह दिया था पारसा मैं ने तुम अपने आप को कुछ भी कहो मज़हब के दीवानो न देखा कोई तुम जैसा ख़ुदा-ना-आश्ना मैं ने जला कर ज़ुल्मत-ए-बातिल में हक़ की मिशअलें यारो ज़माने को बनाया है हक़ीक़त-आश्ना मैं ने ग़रज़ दैर ओ हरम से है न मतलब है कलीसा से जहाँ जल्वा नज़र आया तिरा सज्दा किया मैं ने बहुत ही मो'तबर हूँ क्यूँ कि मैं राही हूँ ऐ 'राही' क़सम ले लो अगर ख़ुद को कहा हो रहनुमा मैं ने