हज़ारों ज़ख़्म दिल में कर रहे तीर-ए-नज़र पैदा बड़ी मुश्किल से फ़ौलादी कहीं होते जिगर पैदा हज़ारों ही तमन्नाएँ इकट्ठा हैं हर इक दिल में बड़ी मुश्किल से तेरी आरज़ू करती है घर पैदा हज़ारों हाथ उठते हैं हज़ारों घुटने टिकते हैं बड़ी मुश्किल से होता है दवाओं में असर पैदा हज़ारों नाम रक्खे मेरे ईमाँ को ज़माना ने बड़ी मुश्किल से मैं पाया यहाँ कुछ नाम कर पैदा हज़ारों आँधियाँ आती हैं और पत्थर बरसते हैं बड़ी मुश्किल से कर पाता है मीठे फल शजर पैदा हज़ारों शे'र जब शाइ'र जिगर के ख़ूँ से लिखता है बड़ी मुश्किल से होता है ग़ज़ल में कुछ असर पैदा हज़ारों अश्क आँखों में 'नया' आते पलक तक हैं बड़ी मुश्किल से होता सीप से है इक गुहर पैदा