हज़ारों उलझनें है इस दिल-ए-ख़ुद्दार के आगे मगर ये हार जाता है तिरे इसरार के आगे तिरी ज़ुल्फ़ों के आगे ये घटाएँ हाथ मलती हैं गुलों के रंग फीके हैं तिरे रुख़्सार के आगे मोहब्बत का करूँ इज़हार लेकिन सोच लूँ पहले कहूँगा क्या अचानक मैं तिरे इंकार के आगे हवाएँ हैं मुख़ालिफ़ पर रखी है थाम कर हम ने हमारी ज़िंदगी क़ुर्बान इस दस्तार के आगे बजा होगा तिरा दावा अभी से मान के हम भी बता क्या फ़ातिहा पढ़ने लगें बीमार के आगे दिए को जब कभी सूरज बनाया जा नहीं सकता कहानी हौसलों की क्यों पढ़ें लाचार के आगे ज़माने सुन तिरी ये फिसलनें चलने नहीं देतीं कहीं भी हम नहीं टिकते तिरी रफ़्तार के आगे