हक़ीक़त भी लगने लगी है कहानी मुझे खा गई है मिरी ख़ुश-बयानी नहीं याद मुझ से मिला था कभी वो वगर्ना उसे याद है हर कहानी कोई यार बैरी न अपना अगर हो तो ये ज़िंदगी है फ़क़त राएगानी बस इक काल पर ही चले आए हो तुम नवाज़िश करम शुक्रिया मेहरबानी यहाँ दूर-ओ-नज़दीक शहर-ए-बुताँ है किसी को नहीं दिल की हालत बतानी उमड आया दिल ऐसे आँखों में 'जाज़िब' कि यकजा हों जैसे कहीं आग पानी