रहीन-ए-बीम-ए-हस्ती है दिल-ए-दीवाना बरसों से हवा की ज़द में है अपना चराग़-ए-ख़ाना बरसों से ख़ुशा ऐ जोश-ए-हसरत अश्क भर आए हैं आँखों में तरसता था चराग़ाँ को मिरा काशाना बरसों से ये हुस्न-ओ-इश्क़ अफ़्क़ार-ए-अज़ल की यादगारें हैं ज़बान-ए-दहर दोहराती है ये अफ़्साना बरसों से जुनून-ए-इश्क़ को मेराज पर पहुँचा दिया हम ने है अपने चाक-ए-पैराहन में इक वीराना बरसों से ये हसरत है जवानी बारयाब-ए-हुस्न हो जाए है आवारा ये मौज-ए-निकहत-e-मस्ताना बरसों से झुका दूँ अर्श-ओ-कुर्सी को अगर वो सामने आएँ लिए फिरता हूँ शौक़-ए-सज्दा-ए-रिंदाना बरसों से मोहब्बत में 'ज़फ़र' है बे-ख़ुदी भी शो'ला-ताबी भी मय-ए-दो-आतिशा पीता हूँ मैं रोज़ाना बरसों से