हाल पूछा न करे हाथ मिलाया न करे मैं इसी धूप में ख़ुश हूँ कोई साया न करे मैं भी आख़िर हूँ इसी दश्त का रहने वाला कैसे मजनूँ से कहूँ ख़ाक उड़ाया न करे आइना मेरे शब ओ रोज़ से वाक़िफ़ ही नहीं कौन हूँ क्या हूँ मुझे याद दिलाया न करे ऐन-मुमकिन है चली जाए समाअत मेरी दिल से कहिए कि बहुत शोर मचाया न करे मुझ से रस्तों का बिछड़ना नहीं देखा जाता मुझ से मिलने वो किसी मोड़ पे आया न करे