क्यूँ सबा की न हो रफ़्तार ग़लत गुल ग़लत ग़ुंचे ग़लत ख़ार ग़लत हम-नवाओं की नहीं कोई कमी बात कीजे सर-ए-बाज़ार ग़लत वक़्त उलट दे न बिसात-ए-हस्ती चाल हम चलते हैं हर बार ग़लत दिल के सौदे में कोई सूद नहीं जिंस है ख़ाम-ए-ख़रीदार ग़लत हर तरफ़ आग लगी है 'बाक़ी' मशवरा देती है दीवार ग़लत