हाल पूछा तो हँस के टाल दिया उस ने इक इम्तिहाँ में डाल दिया ज़ख़्म दुनिया ने जिस क़दर भी दिए उस ने ज़ख़्मों को इंदिमाल दिया किस लिए अब हवा का रुख़ देखें नाव को जब नदी में डाल दिया निस्बत-ए-राहबर भी क्या शय है गिरते गिरते हमें सँभाल दिया बारहा डूबते सफ़ीनों को मौज-ए-तूफ़ाँ ने ख़ुद उछाल दिया रौशनी बख़्श दी सितारों को उस ने सूरज को गर ज़वाल दिया जो मिला बे-तलब मिला उस से जो दिया उस ने बे-मिसाल दिया उस को दुश्मन कहूँ कि दोस्त 'नसीम' जिस ने माज़ी को ले के हाल दिया