सामने आँखों के रक़्साँ था तमाशा दूसरा और मंज़र मैं ने दुनिया को दिखाया दूसरा लम्हा-ए-फ़ुर्सत मिले तो ग़ौर करना चाहिए बाम-ओ-दर किस के चमन में कौन आया दूसरा रक़्स-ए-आसेब-ए-फ़ना जारी यहाँ जब से हुआ ढूँढती हैं अब हवाएँ भी ठिकाना दूसरा ख़ुद शनासी के मराहिल तय न हो पाए अगर मैं भी हो जाऊँगा शायद रफ़्ता रफ़्ता दूसरा अब ख़ुशी से हम चलें इस पर कि जबरी तौर पर सामने अपने रहा कब कोई रस्ता दूसरा इक पियाले में था अमृत दूसरे में ज़हर था सोच कर मैं ने उठाया है पियाला दूसरा मैं कि फूलों की ज़बाँ में बात करता था 'नसीम' शहर के हालात ने बख़्शा है लहजा दूसरा