हलाकत-ए-दिल-ए-नाशाद राएगाँ भी नहीं निगाह-ए-दोस्त में अब कोई इम्तिहाँ भी नहीं तलाश-ए-दैर-ओ-हरम का मआ'ल क्या कहिए सुकूँ यहाँ भी नहीं है सुकूँ वहाँ भी नहीं तिरी निगाह ने खोला मोआ'मला दिल का नज़र ज़बाँ नहीं रखती प बे-ज़बाँ भी नहीं उसी को सारे ज़माने से हम छुपाए रहे वो एक बात ज़माने से जो निहाँ भी नहीं सुबूत बर्क़ की ग़ारत-गरी का किस से मिले कि आशियाँ था जहाँ अब वहाँ धुआँ भी नहीं निशान-ए-क़ाफ़िला-ए-उम्र ढूँडने वालो यहाँ तो दूर तलक गर्द-ए-कारवाँ भी नहीं