हालात बदलने की ख़बर है कि नहीं है शाने पे ज़रा देख ले सर है कि नहीं है ये घर के मसाइल हैं कभी ख़त्म न होंगे ऐ मेरे ख़ुदा इन से मफ़र है कि नहीं है जो दश्त-नवर्दी के लिए छोड़ दिया था अब शहर-ए-तमन्ना में वो घर है कि नहीं है करनी थी तिरे हुक्म की तामील सो कर दी बोल अपनी सिफ़ारिश में असर है कि नहीं है आवाज़ तो होती नहीं लाठी में ख़ुदा की ज़ालिम तुझे कुछ इस का भी डर है कि नहीं है ज़रदार है बाप उस का तो क्या देखना लेकिन लड़के में कमाई का हुनर है कि नहीं है 'इमरान' तुझे मंज़िल-ए-इरफ़ाँ तो है मतलूब हमराह तिरे रख़्त-ए-सफ़र है कि नहीं है