हालात की भीगी रात भी है जज़्बात का तेज़ अलाव भी मैं कौन सी आग में जल जाऊँ ऐ नुक्ता-वरो समझाओ भी हर-चंद नज़र ने झेले हैं हर बार सुनहरे घाव भी हम आज भी धोका खा लेंगे तुम भेस बदल कर आओ भी गिर्दाब के ख़ूनीं हल्क़ों से जब खेल चुकी है नाव भी पतवार बदलना क्या मा'नी? मल्लाहों को समझाओ भी बे-कैफ़ झकोले काँटों को शादाब तो क्या कर पाएँगे जो फूल पड़े हैं राहों में उन फूलों को महकाओ भी हम से तो जफ़ाओं के शिकवे तुम हँस कर छीन भी सकते हो हम दिल को पशेमाँ कर लेंगे तुम प्यार से आँख झुकाओ भी गुल-रंग चराग़ों की लौ से तारीक उजाले फूट बहे हर ताक़ में घोर अँधेरा है इस रंग-महल को ढाओ भी