तुम्हें जब कभी मिलें फ़ुर्सतें मिरे दिल से बोझ उतार दो मैं बहुत दिनों से उदास हूँ मुझे कोई शाम उधार दो मुझे अपने रूप की धूप दो कि चमक सकें मिरे ख़ाल-ओ-ख़द मुझे अपने रंग में रंग दो मिरे सारे रंग उतार दो किसी और को मिरे हाल से न ग़रज़ है कोई न वास्ता मैं बिखर गया हूँ समेट लो मैं बिगड़ गया हूँ सँवार दो