हालात मिरे दिल को लगाने नहीं देते आँखों में तिरे ख़्वाब सजाने नहीं देते ज़ुल्मत के पुजारी तो बहुत तंग-नज़र हैं जश्न-ए-शब-ए-तारीक मनाने नहीं देते आँखों पे तो बिल्कुल ही कोई बस नहीं चलता हम ख़ुद को तिरी बज़्म में जाने नहीं देते जन्नत की दुआएँ मुझे देते हैं सभी लोग इस अहद में जीने के बहाने नहीं देते नफ़रत की रिवायात के पाबंद हैं लहजे रूठे हुए लोगों को मनाने नहीं देते कुछ ख़्वाब मिरी ज़ात से बढ़ कर भी तो हैं जो फिर दिल को तिरी आस लगाने नहीं देते सूखे हुए फूल और तिरे लम्स की ख़ुश्बू सदमा तिरे जाने का भुलाने नहीं देते गोयाई है पाबंद-ए-सलासिल कि 'अमीर' अब सहरा में भी आवाज़ लगाने नहीं देते